तालियों की गड़गड़ाहट से सारा ऑडिटोरियम गूंज रहा था, पर मुझे उस शोर में भी माँ की तालियों की आवाज़ सुनायी दे रही थी , जो आज भी वैसे ही थी जैसे माँ बचपन में मेरे स्कूल के किसी भी फंक्शन में मुझे स्टेज पर देख कर बजाती थी, मुझे उस भीड़ में भी वो दिखायी दे रही थी, उसके आँसू उसके चेहरे पर बह रहे थे ना जाने ये ख़ुशी के आँसू थे या मुझे स्टेज पर देख के बीते वक्त की यादों के….पता नहीं..

माँ मुझे , और मैं माँ को ही देखे जा रही थी। आज पापा बहुत याद आ रहे थे पर क्या याद करूँ? कुछ भी तो नहीं था याद करने के लिए।

ये सम्मान ये पुरस्कार सही मायनों में मेरा नहीं था, मेरी माँ का था,उसके बिना मेरा अस्तित्व ही नहीं था , इसलिए उनका स्टेज पर होना बहुत ज़रूरी था , मैंने अपनी माँ को स्टेज पर बुलाया और ये मैडल उन्हें दिया , जिसकी असली हक़दार वो थी , एक बार फिर से तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा। मुझे याद है वो दिन जब पापा ने माँ से वादा लिया था मेरी अच्छी परवरिश का, मेरी देखभाल का ,और माँ ने उसे पूरी तरह निभाया, समाज की , दुनिया की ,अपने सगे संबंधियों की परवाह किए बिना । मुझे ही अपनी ज़िंदगी का मक़सद बना लिया था । देखा है मैंने उनको सिर्फ़ मेरे लिए जीते हुए , जब तक मैं घर ना आ जाऊँ , बालकनी में खड़े होकर मेरा इंतज़ार करते हुए ।इतना आसान नहीं था,इस पुरुष प्रधान समाज में अकेले रह कर मुझे पालना और यहाँ तक पहुँचाना।

कई बार मैंने नाना-नानी को माँ को समझाते हुए सुना था कि “दूसरी शादी कर ले, कैसे इतनी लंबी ज़िंदगी अकेले काटेगी, तुम हमेशा अपने दिल की करती हो ना तुमने शादी के वक्त हमारी राय ली ना अब तुम हमारी सुन रही हो..अजय खुद तो चला गया और ये ज़िम्मेदारी तुम्हें दे गया… कैसे करोगी ये सब किसी आदमी के सहारे के बग़ैर” पर माँ उनसे मेरे लिए लड़ने लगती । मैं कमरे के बाहर से सुनती रहती… मैंने अपने आप से ये वादा ज़रूर कर लिया था कि माँ को कभी किसी आदमी के सहारे की कमी महसूस नहीं होने दूँगी।उसका सबसे मज़बूत सहारा बनूँगी।

वैसे स्कूल में, मैं कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थी कि माँ को मुझ पर गर्व ना हो , और वो हर कार्यक्रम में स्कूल आती भी थी .. मेरा स्पोर्टस डे हो या मेरा एनुअल डे हो या पैरेंट्स टीचर मीटिंग। वो सब जगह होती थी मेरे साथ । एक बार तो वो लड़ भी पड़ी थी कुछ लड़कों से जब उन लड़कों ने मेरी रेड ड्रेस को देख कर मुझे बस स्टॉप पर छेड़ा था रेड हॉट बोल के .. शायद माँ को रेड लाइट सुनायी दिया, हाँ बुरा तो मुझे भी लगा था पर माँ तो बिदख ही गई थी , और होती भी क्यूँ ना परेशान उसी से तो वो मुझे इतने सालों से बचा रही थी…

रेड लाइट सिर्फ़ रेड लाइट नहीं थी उनके लिए, उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी थी रेड लाइट एरिया ने । हाँ रेड लाइट एरिया से ही तो पापा मुझे लाए थे , वो पापा नहीं थे मेरे वो तो न्यूज़पेपरर रिर्पोटर थे अक्सर हमारी बस्ती में आते और हमारे बारे में लिखते ..एक दिन उन्होंने देखा कि मुझे कहीं भेजा जा रहा है … वो बीच में बोल पड़े ये ग़लत है वो बच्ची है, अभी नाबालिग है उसकी ज़िंदगी का फ़ैसला तुम लोग नहीं कर सकते .. बहुत तूतू -मैं मैं हुई , बहस अब लड़ाई में बदल गई, पापा ने मुझे गोद में उठाया और वहाँ से भागने लगे… कुछ लोग भी पापा के पीछे भाग रहे थे.. बहुत चोट लगी थी पापा को ..चाकू के बहुत गहरे घाव लगे थे पर उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा.. इन गलियों में उनका आना-जाना था इसलिए उन्हें कई चोर रास्ते पता थे.. वो गिरते पड़ते मुझे वहाँ से अपने घर ले ही आए । ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने लगे जैसे दरवाज़ा खुला पापा वही गिर पड़े, अजय! माँ ज़ोर से चिल्लायीं माँ रोये जा रही थी ,पापा, माँ को बोलने लगे “हेमा इसे बचा लो … तुम इस बच्ची को लेकर कहीं और चली जाओ”.. इसे अपनी बेटी ही समझना.. बस ये कहते कहते वो इस दुनिया से चले गए .. माँ भी कभी-कभी पापा के साथ हमारी बस्ती में आती थी , वो औरतों पर होने वाले अत्याचारों के ख़िलाफ़ लेख लिखती थी , वो समझ गई कि पापा मुझे वहाँ से लाए हैं, और अब यहाँ रहना किसी खतरे से ख़ाली नहीं है मैं कोने में खड़े होके माँ को देख रही थी वो लाल साड़ी में बिल्कुल दुल्हन की तरह लग रही थी उसके बाद तो मैंने कभी माँ को वैसे तैयार होते नहीं देखा बड़े होकर पता चला कि उस दिन करवाचौथ था और माँ का तो पहला भी और आख़िरी भी । उस दिन माँ की ज़िंदगी बदल गई .. उनका सबसे अच्छा दोस्त, जिस से उन्होंने अपने घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ शादी की थी, उनका प्यार उनका घर सब कुछ छीन गया और मैं एक अनजाना रिश्ता बनकर उनकी ज़िंदगी में आ गई ।माँ मुझे लेकर किसी दूसरे शहर में आ गई

मेरी आँखो के सामने मेरी पूरी ज़िंदगी आ गई थी और मैं सोचने लगी माँ ने अगर उस दिन मुझे अपनाया नहीं होता तो मैं आज यहाँ नहीं कहीं किसी कमरे में बंद होती मैंने माँ से कहा “मुझे नहीं पता आपने पापा से किया हुआ वादा निभाया या एक स्त्री होने का फर्ज़ निभाया.. मुझे एक नयी ज़िंदगी देकर, मुझे गर्व है आप पर। माँ तुम प्रेरणा हो उन लोगों के लिए जो समाज के भले के लिए कुछ तो करना चाहते हैं पर उसी समाज के डर से कुछ कर नहीं पाते , तुमने तो अपना सब कुछ खोकर भी समाज के उस हिस्से को अपनाया जिसकी लोग खुलकर बात तक करना नहीं चाहते।”

“मैंने तो एक लड़की को बचाया था पर आज तूने तो इस पूरे गिरोह को पकड़ कर ना जाने कितनी लड़कियों को बचाया है माँ मेरे कंधे पर लगे सितारों को सहला कर बोल रही थी आई पी एस शैलजा मुझे तुम पर गर्व है ।बेटी तुम हर उस लड़की के लिये प्रेरणा हो जो अपने जीवन में कुछ करना चाहती हैं चाहे परिस्थियाँ अनुकूल हों या ना हों।


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